जीवन पथ में सत्य का मार्ग मत छोडिए -- परमपूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज
श्रीराम कथा के चौथे दिवस दी बच्चों के नैसर्गिक विकास की शिक्षा
अनूपपुर :- जीवन में आप कुछ करो या ना करो, सत्य का मार्ग मत छोडिये। कभी भी सत्यपथ से च्युत मत होईये। अनूपपुर में आयोजित श्रीराम कथा आयोजन के चौथे दिन व्यासपीठ से परमपूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने भगवान श्री राम ,लक्ष्मण, भरत , शत्रुघ्न की बाल्यलीला का वर्णन करते हुए उपरोक्त शिक्षा देते हुए कहा कि देश में सबसे बड़ी मेहनत से बनाए गये भारतीय सेवा के तीन प्रमुख सेवा आईएएस, आईपीएस, आईएफएस बनने के बाद भ्रष्टाचार, बेईमानी की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिये जो प्रकृति जो बनाए ,वो बनने दीजिये । बच्चों को आप बनाने की कोशिश ना करो।परमात्मा को पता है कि उसे किस निमित्त ,किस कार्य के लिये भेजा गया है। उसकी सहजावस्था को नष्ट मत कीजिये । उसकी प्रतिभा का हनन ना करें। बच्चों में जो प्रतिभा होगी ,प्रकृति उसे स्वयं बना देगी। बच्चों को बहुत बनाने की कोशिश ना कीजिये । ज्यादा बना देंगे तो वो माता - पिता को छोड़ कर विदेश जाकर बस जाएगा।
भगवान राम की बाल लीला के दौरान माता कौशल्या को सत्य स्वरुप के दर्शन कथा का वर्णन करते हुए श्री प्रेमभूषण जी ने कहा कि भक्ति दर्शन जीव को माया से बचाती है। खेलना बच्चों के लिये अनिवार्य है, उन्हे मनी प्लांट ना बनाएं। पढाई के साथ खेलकूद, सामान्य ज्ञान बहुत जरुरत है। खेलने से बच्चो का सर्वांगीण विकास होता है। सौष्ठव ,उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है।सुखी ना करिये....सुखी रहिये।
किसी को बनाईये मत...स्वयं बनिये। जो जिस निमित्त आया है, वह स्वयं बन जाएगा।
श्रीराम कथा में सत्य सनातन धर्म का वर्णन करते हुए परमपूज्य जी कहा कि संस्कार लिया जाए तो आता है।अयोध्या जी में भगवान श्री राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न चार भाईयों के प्रकटोत्सव की कथा कहते हुए परमपूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि -जो जीवन मे घटनाक्रम होता है वह जन्म जन्मान्तर के पुण्य का प्रताप होता है।श्री राम प्रभू के प्राकट्य महोतस्व के रस का महत्व वही समझ सकता है जिस पर भगवान श्री राम की कृपा होती है।भगवत भजन, ईश कार्य में, देव कार्य में जो जिस समर्पण भाव से कार्य करता है । ईश्वर की वैसी ही कृपा होती है। बच्चो के वर्तमान नामकरण पर टिप्पणी करते हुए महाराज जी ने कहा कि नामकरण देवी - देवताओं के नाम से करना चाहिए । गूगल से ना पूछो।पहले नाम केदारनाथ, द्वारिकानाथ जैसे पवित्र होते थे।
अब कुछ भी नाम रख लेते हैं।
परमपूज्य जी ने बतलाया कि राम जी ब्रम्हा हैं और भरत जी कृष्ण हैं।जिसके साथ रहने का सुयोग बन गया हो , उसके साथ मन से रहो। जहाँ हो ,वहाँ मन से रहो। हर तरह से वहीं रहो।जो ऐसा नहीं करता, वो कहीं का नहीं रहता।ज्येष्ठ के वचनों मे निष्ठा रखने वाला, श्रेष्ठ पर पूरा भरोसा करने वाला हमेशा सुखी रहता है। पति - पत्नी में विवाद हो तो जो अधिक समझदार हो ,वो चुप हो जाए।
बचपन एक आनंद है। बच्चो से अचिंत्य ,अपरिग्रह, निर - बैरता का गुण सीखना चाहिए । बच्चे कभी कोई चिंता नहीं करते। बच्चे वस्तुओं का संग्रह नहीं करते। बच्चे आपस में बैर नहीं पालते। यह सद्गुण बच्चों से सीखना चाहिए।
बच्चों को बच्चा रहने दो। उसे समय से पहले बड़ा मत करो। बहुत समझदार मत बनाईये। बहुत समझदार व्यक्ति बहुत दुखी रहता है।
परमपूज्य जी ने कहा कि आनंद ही जीवन का मूल है। हमारे भगवान श्री राम जी से हम सबको यह आचरण ग्रहण करना चाहिए । जीवन सुखी रहेगा।