महिला सशक्तिकरण पर विशेष
कर्तव्य की मिसाल एक मां, एक अफसर रक्षित निरीक्षक/यातायात प्रभारी श्रीमती ज्योति दुबे
अनूपपुर की यातायात प्रभारी श्रीमती ज्योति दुबे की कहानी आज की हर नारी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। दमोह जिले के एक छोटे से गांव छपरट बम्होरी से निकलकर उन्होंने संघर्षों की लंबी यात्रा तय की है। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्हें माध्यमिक विद्यालय के लिए प्रतिदिन छः किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था, जिसमें एक नदी भी पड़ती थी। उस नदी को पार करने के लिए कोई पुल नहीं था, इसलिए ट्यूब की मदद से उसे पार करना पड़ता था।
पढ़ाई के प्रति उनके समर्पण को इस बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने दमोह में किराए के मकान में रहकर अपनी शिक्षा जारी रखी और खर्च चलाने के लिए बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाया। पढ़ाई पूरी करने के बाद उनका चयन पुलिस विभाग में कांस्टेबल के पद पर हुआ। ड्यूटी निभाते हुए ही उन्होंने सब-इंस्पेक्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की और आज एक महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं।
ज्योति दुबे बताती हैं कि एक कामकाजी महिला के लिए मां होना आसान नहीं होता। कई बार बच्चे मां को छोड़ने को तैयार नहीं होते, वे रोते हैं, लेकिन कर्तव्य के आगे भावनाएं भी झुक जाती हैं। रोते हुए बच्चे को छोड़कर ड्यूटी पर जाना आसान नहीं होता, परंतु अपने कर्तव्य को सर्वाेपरि मानकर वह हर दिन नए हौसले के साथ कार्य करती हैं।
उनका मानना है कि पुलिस विभाग में महिलाओं की भागीदारी से समाज में महिला सशक्तिकरण को नई दिशा मिली है। अब महिलाएं खुलकर अन्याय का विरोध करती हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। ज्योति दुबे और उनकी टीम महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक करने में भी निरंतर कार्यरत हैं। ज्योति दुबे की यह जीवन यात्रा न केवल साहस, समर्पण और संघर्ष की कहानी है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि यदि इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बाधा रास्ता नहीं रोक सकती। वह एक मां हैं, एक पुलिस अधिकारी भी हैं और सबसे बड़ी बात वह एक प्रेरणा हैं।
साभार - वरिष्ठ पत्रकार मनोज द्विवेदी की फेसबुक वाल से