मूल कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, दूसरों से सापेक्षता जड़ों को कर सकता है कमजोर -- सावधानी अपेक्षित publicpravakta.com


विचार , सिद्धांत, अनुशासन की मिसाल बनी भारतीय जनता पार्टी   


मूल कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, दूसरों से सापेक्षता जड़ों को कर सकता है कमजोर -- सावधानी अपेक्षित

     

( स्थापना दिवस विशेष- मनोज द्विवेदी, अनूपपुर) 


 अनूपपुर :- विगत कुछ वर्षों मे देश की राजनीति ने नागरिकों के सम्मुख दो तरह की विचारधारा प्रस्तुत की है।इसके केन्द्र मे सकारात्मक राष्ट्रवादी विकास की मुख्यधारा है,जिसकी अगुवाई भारतीय जनता पार्टी व उसके पीछे अभिभावक की तरह खडा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है , तो दूसरी ओर अन्य सभी दल हैं,  जिनके पास न विचारधारा की पुष्टता है और न ही सिद्धांत , नेतृत्व और अनुशासन ।

 देश की जनता का झुकाव यदि भाजपा की ओर बढा है तो यह कोई रातों रात हुआ कोई चमत्कार नहीं है , न ही व्यक्ति पोषित राजनीति का हिस्सा। वस्तुत: लोगों ने यह पाया है कि देश निर्माण के लिये संघर्ष, विचारधारा, संयम यदि किसी मे है तो वह भारतीय जनता पार्टी में है। 

डा श्यामाप्रसाद मुखर्जी ,पं दीनदयाल उपाध्याय की भाजपा अटल - आडवाणी के दौर को पार कर मोदी- योगी - शाह के समय की आक्रामक लेकिन जिम्मेदार भाजपा बनी है तो इसके पीछे उक्त ख्याति लब्ध चेहरों के अतिरिक्त लाखों ऐसे जुझारु,समर्पित अनजाने - अनचीन्हे चेहरों की अथक मेहनत है जिसके बिना इस मंजिल तक पहुंचना लगभग असंभव था।

             

डा  श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा १९५१ में जनसंघ की स्थापना की गयी । १९७७ में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनता पार्टी के निर्माण हेतु जनसंघ का अन्य दलों के साथ विलय हो गया।। जिसने  १९७७ के आम चुनावों में कांग्रेस को पराजित कर सरकार का गठन किया।यह प्रयोग तीन वर्ष चला । ६ अप्रैल १९८० को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद १९८४ के आम चुनाव मे २ सीटें जीतने वाली भाजपा  ने कुछ वर्षो मे ही उत्तरप्रदेश,मध्यप्रदेश,गुजरात,राजस्थान मे अपनी सरकार बनाली। अयोध्या मे ढांचे के ढहने के बाद केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने चारों राज्यों की भाजपा सरकारों को बर्खाश्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया। १९९६ में पार्टी भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो १३ दिन चली।

१९९८ में आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का निर्माण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो तेरह माह  तक चली। इसके बाद आम-चुनावों में राजग को पुनः पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। २००४ के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और अगले १० वर्षों तक भाजपा ने संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई। २०१४ के आम चुनावों में राजग को गुजरात के लम्बे समय से चले आ रहे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी जीत मिली और २०१४ में सरकार का बनायी। 2019 में प्रचण्ड पूर्ण विजय ने इतिहास रच दिया। आज    इसके अलावा कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी है ।


वस्तुत: भाजपा छद्म धर्म निरपेक्षता की आड मे चलाए जा रहे संतुष्टिकरण  की राजनीति के दुष्परिणामों का असर देश पर पडता देख पा रही थी।भाजपा विकास के लिये समरस भारत - समर्थ भारत की भावना से कार्य कर रही है। सबका साथ - सबका विकास का उसका नारा महज जुमला न हो कर धरातल पर उतरता दिखा। उ प्र के साथ अन्य तीन राज्यों मे 2022 मे बनी सरकार इस बात का परिचायक है कि लोगो का विश्वास विकास को लेकर भाजपा पर जमा है।      ‌            

हिन्दुत्ववादी विचारधारा की छाप होने के बावजूद भाजपा शासित किसी भी राज्य की कानून व्यवस्था अन्य राज्यों से बेहतर है तो विकास दर भी काफी अच्छी ।देश की मजबूती के लिये,राष्ट्रवाद को पुष्ट करने के लिये एवं राष्ट्र विरोधी ताकतों को कुचलने के लिये राज्यों व केन्द्र मे भाजपा सरकार जरुरी है। सरकार बनाने के लिये जिस मजबूत संगठन की दरकार है। भाजपा से मजबूत ,सक्रिय एवं अनुशासित संगठन देश मे दूसरी कोई नहीं ।

इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी 2022 तक पहुंचते - पहुंचते थोड़ी दुविधा का शिकार होती दिख रही है। जिला एवं प्रदेश कार्यालयों में बैठे लोगों को यह समझना होगा कि मूल समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करके ,अन्य दलों से आए लोगों को सिर पर बैठाने से पार्टी की जड़ें कमजोर पड़ रही हैं। 2016 से जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में बेचैनी का बढता भाव अब चरम पर है। गुटबाजी से बचे बिना एकजुटता और मजबूती की बात नहीं हो सकती। कांग्रेसी बीमारी और तमाम दोष भाजपा में समाहित हो चुके हैं। गाँव स्तर का कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना बड़ी चुनौती बनने जा रहा है। कार्यक्रमों की भरमार है तो आंकडेबाजी का महत्व भी बढ़ा है। संगठन के शीर्षस्थों को कार्यकर्ताओं से मिलना होगा, उन्हे सुनना होगा, उन्हे समझना होगा। कार्यकर्ताओं और पार्टी के एक बड़े तबके को उपेक्षित करके नये लोगों को जोड़ भी लिया जाए तो वह कितना टिक पाएगा, इसकी गारंटी किसी के पास नहीं । सत्ता के घुटनों पर संगठन के गिरने की घटनाओं से कार्यकर्ताओं के काम नहीं हो रहे। जिन जिलों में कांग्रेस या अन्य दलों से आए लोगो को शीर्ष पर बैठाया गया है ,वहाँ भाजपा के लोगों की ही जमकर उपेक्षा ,उनका अपमान किया जा रहा है। वर्षों वर्ष पुराने कार्यकर्ताओं को दर किनार करके नये लोगों को सत्ता और संगठन में महत्व मिलने से दुविधा बढी है। तमाम राजनैतिक नियुक्तियों में इसके उदाहरण देखे जा सकते हैं। मनमानी और स्वेच्छाचारिता चरम पर है। आगामी दो वर्षों में विधानसभा, लोकसभा, नगरीय एवं पंचायत चुनाव होने हैं। केन्द्र और प्रदेशों के निर्णायक स्तरों पर बैठे शीर्ष नेताओं को इस ओर समय रहते चिंता करने और बीमारी का निदान - उपचार करने की जरुरत है। देवतुल्य कार्यकर्ता सिर्फ शब्द मात्र नहीं, संगठन और सत्ता का मूल है...यह भाव , यह संदेश मजबूती से दिये बगैर आगे का मार्ग सरल नहीं हो सकता।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भाजपा मे आने वाले प्रचारकों की कडी नजर पदाधिकारियो, कार्यकर्ताओं के साथ कार्यक्रमों- योजनाओं पर बनी रहने से पार्टी के स्वाभाविक दोषों पर भी नियंत्रण बना रहता है। यह पार्टी के भीतर कडे अनुशासन की रीढ मानी जाती है।   भाजपा का स्थापना दिवस कार्यकर्ताओं को अपने गौरव शाली इतिहास से जुडने का अवसर प्रदान करता है। इस शुभ अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ, बधाई ,अभिनन्दन । 


भारत माता की जय

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