इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में 'बैगा जनजातीय देवलोक' पर संगोष्ठी का आयोजन publicpravakta.com


शिवत्व कल्याण का भाव आज भी बैगा घरों में सुरक्षित - कुलपति प्रो.त्रिपाठी


जनजातीय समाज प्रकृति पूजक, मंगल के प्रतीक हैं दूल्हा देव - कुलपति प्रो.त्रिपाठी


इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में 'बैगा जनजातीय देवलोक' पर संगोष्ठी का आयोजन


अनूपपुर :- जनजातीय लोककला एवं बोली विकास अकादमी,भोपाल द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक में बैगा जनजातीय देवलोक पर एक दिवसीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया, संगोष्ठी का शुभारंभ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी की अध्यक्षता में तथा इस वर्ष भारत सरकार द्वारा पद्मश्री हेतु चयनित प्रसिद्ध बैगा  कलाकार अर्जुन सिंह धुर्वे, बैगा  कलाकार भागवती रठूरिया के आतिथ्य में किया गया। इस अवसर पर जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी के निदेशक डॉ.धर्मेंद्र पारे, विश्वविद्यालय के जनजातीय अध्ययन विभाग के अधिष्ठाता प्रो. पी.के सामल, विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष  प्राध्यापक, छात्र सहित देशभर के शोधार्थी उपस्थित रहे।

अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो.त्रिपाठी ने कहा कि मूलत: हम सभी जनजातीय समाज से आते हैं, लेकिन विकास की यात्रा में हमने अपने मूल को कहीं ना कहीं छोड़ दिया है। हमारी मूल पहचान हमारी संस्कृति, परंपराएँ व परंपरागत ज्ञान है। बैगा समाज में सहजीवन, सामंजस्य, समग्रता, संवेदनशीलता, संतुलन का भाव आज भी विद्यमान है। संवेदनशीलता ही हमें मनुष्य बनाती है, उन्होंने कहा कि बैगा समाज ने परंपरा की विरासत को सुरक्षित रखा है।


उन्होंने रेवा खंड का उल्लेख करते हुए कहा कि रेवाखंड ने रचनाधर्मिता के विविध क्षेत्रों को समेट कर सनातन परंपरा को संरक्षित रखने का कार्य किया है। वृक्षों में देवता निवास करते हैं यह सनातन संस्कृति का उद्घोष है, इसी भाव को चरितार्थ करते हुए बैगा जनजाति अपने देवता का निवास स्थल साल के वृक्ष में मानती है, इसलिए आज भी रेवा खंड में साल के घने जंगल सुरक्षित है। बैगा समाज आज भी वृक्षों से, जीव जंतुओं से, वनस्पतियों से संवाद करता है। उसके लिए दूल्हा देव मंगल का प्रतीक है, जो उन्हें व्याधियों से बचाते हैं। अंत में उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय, अकादमी के साथ समन्वय स्थापित करते हुए शोध के क्षेत्र में सतत कार्य करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा।


विषय प्रवर्तन करते हुए जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी के निदेशक डॉ. धर्मेंद्र पारे ने कहा कि जनजातीय देवलोक पर सही व प्रमाणिक जानकारी एकत्रित हो, साथ ही इन जनजातियों की संस्कृति व परंपरा से सभी लोग परिचित हो सकें, इसी उद्देश्य के साथ अकादमी द्वारा विभिन्न स्थानों पर शोध संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। अधिष्ठाता जनजातीय अध्ययन संकाय प्रो. पीके सामल ने स्वागत वक्तव्य देते हुए बैगा   समाजकी विभिन्न विशेषताओं के बारे में विस्तार से बताया। संचालन शुभम चौहान व आभार डॉ.अमित सोनी ने व्यक्त किया।

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