आत्म निर्भर भारत में गौ - धन की भूमिका सड़कें बनी बूचड़खाना -- जिम्मेदार कौन ? - मनोज द्विवेदी publicpravakta.com

 


आत्म निर्भर भारत में गौ - धन की भूमिका 


सड़कें बनी बूचड़खाना -- जिम्मेदार कौन ?


( मनोज द्विवेदी, अनूपपुर, म प्र )


जब दुनिया में अन्य किसी तरह की संस्कृति, सभ्यता का कोई ओर - छोर तक नहीं था, भारतीय सभ्यता ने प्रकृति एवं उससे जुड़े सभी अवयवों का महत्व समझ कर उसे पूज्यनीय बतला कर संरक्षित करने का जतन कर लिया था। गाय का गोबर उनमें से एक अवयव है जो लीपने के काम आता है , तो पोतने के काम भी आता है। घर, मन्दिर, खेत, श्मशान सब जगह इसकी आवश्यकता थी। अब घर फ्लैट हो गये और खेतों में रासायनिक खाद से फसलें ली जाने लगीं तो गोबर और गाय दोनों की जगह अब सड़क पर हो गयी है। जब से गायों को बूचड़ खाने में कटने से बचाने के लिये हिन्दूवादी संगठन सक्रिय हुए हैं और सरकारें सख्त हुई हैं तब से सड़कों पर गौ वंश का सामूहिक वध होने लगा है। गौ पालकों ने घरों में भैसों को पनाह दी , तब से गौ वंश बे - घर कर दी गयीं। सड़कों पर गाय - बैलों के कब्जे से यातायात दुर्गम हो गया है। इनसे टकरा कर दुर्घटना ग्रस्त हो कर हजारों लोगों की जानें जा रही हैं । भारी वाहनों की ठोकर से गायों को भी गंभीर चोटें आ रही हैं । उनका सामूहिक संहार हो रहा है। यह समाज और सरकार के लिये बड़ी चिंता का विषय बन गया है।

    अभी कुछ समय पहले एक खबर सबका ध्यान खींचा कि छत्तीसगढ़ सरकार डेढ रुपये किलो गोबर खरीदेगी। छत्तीसगढ़ सरकार ने गोबर को गौ धन बना दिया।  गोबर भारतीय सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिन्दू परिवार हजारों साल से गोबर का धार्मिक, आध्यात्मिक, आर्थिक महत्व समझते रहे हैं। भगवान सत्यनारायण की कथा से लेकर जन्म, उपनयन, विवाह सहित सभी शुभ कार्यों तथा मृत्यु से जुडे कर्मकाण्डों में गोबर की जरुरत  होती है। 

सुघड गृहणियां आज भी तुलसी के घरुवा तथा आंगन का एक हिस्सा गोबर से जरुर लीपती हैं। बहुत से ग्रामीण आज भी घर के दीवारों को बनाते समय मिट्टी में गोबर, भूसी जरुर मिलाते हैं । यह दीवारों को अतिरिक्त मजबूती प्रदान करता है। गोबर ईंधन का अच्छा स्रोत है....धर्म से जुड़े लोग गाय के गोबर के कंडे को जला कर शुद्ध घी से हवन भी करते हैं। 

प्रसूता के कमरे मे कंडा जलाकर अजवाइन का धुंआ करने, उसकी आंच में गर्म तेल की मालिश का रिवाज आज भी जानकार परिवारों में है। किसान बन्धुओं के लिये जैविक खेती की कल्पना बिना गोबर पूरी हो ही नहीं सकती। 

कहने का आशय यह कि दिमाग को छोडकर गोबर हर जगह  बहुउपयोगी.. अत्यंत महत्वपूर्ण है ...इसलिये यह पूज्यनीय है।

भारत के कुछ हिस्सों में पशु पालकों की स्वार्थपरता तथा कुछ मामलों में मजबूरी के चलते लोगों में गाय को दुहने , बैलों का उपयोग कर उन्हे घर पर या खनिहाल में बांध कर रखने की जगह सडकों में खुला छोड देने की आपराधिक प्रवृत्ति सामने आ रही है। 

आवारा घूमते पशुओं के चलते ऐरा प्रथा को बढावा मिला है। इससे फसलों को बडा नुकसान होता है। सडकों पर आए दिन दुर्घटनाएं होने से जानें जा रही हैं, लोग विकलांग हो रहे हैं , परिवार तबाह हो रहे हैं। पशुओं को सडकों पर खुला छोड़ देना अत्यंत प्राणघातक तथा आपराधिक मामला है। 

कुछ वर्ष पूर्व अनूपपुर जिले की रामनगर पुलिस ने ऐसे ही मामले में पशु मालिकों के विरुद्ध प्रकरण दर्ज किया था। हाइवे तथा सडकों पर जानवरों के झुण्ड बैठे रहते हैं । जिसके कारण स्वयं इनकी जान भी खतरे में रहती है। सडकों पर इनके फैलाए गोबर से फिसल कर बहुत से दो पहिया वाहन चालक गिर कर हाथ पैर तुडवा लेते हैं। इनके आपसी द्वंद , झगडे का शिकार भी आम जनता होती रहती है।

 प्रशासन ने ऐरा प्रथा के विरुद्ध कई अभियान चलाए हैं, लेकिन कडी कार्यवाही के आभाव में पशुमालिकों के आचरण में सुधार नहीं है।

 ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गोबर खरीदने की पहल शायद काम कर जाए। गोबर लाभदायक है। शहरी- ग्रामीण क्षेत्रों में लोग आज भी 2-10 रुपये में गोबर का एक कंडा बेंचते हैं। 

म प्र के शहडोल के तत्कालीन कमिश्नर जे के जैन ने नर्मदा उद्गम मन्दिर अमरकंटक में गोबर के बने गमले मे पौधा रोप कर प्रसाद रुप में श्रद्धालुओं को देने की योजना चलाई थी। 

शहडोल में ही सद्गुरु मिशन के धेनु सेवा संस्थान द्वारा गायों के संरक्षण का महत्वपूर्ण कार्य करते हुए गोबर की सिल्लियां बना कर ईंधन के लिये सुलभ कराया गया है। जैविक खाद के लिये गोबर खरीदा - बेंचा जाता है। 

   छत्तीसगढ़ सरकार ने गोबर खरीदने की योजना शुरु की है। यह सराहनीय एवं अन्य राज्यों के लिये अनुकरणीय है। गोबर की कीमत मिलने पर लोग पशुओं को घर पर रख कर उन्हे चारा- पानी देकर पालन करेंगे तो ना केवल वे स्वावलंबन की ओर आगे बढेंगे अपितु ऐरा प्रथा पर रोक भी लगेगी। गोबर से बनी सिल्लियां चूल्हे में जलाई जा सकती हैं। यह ईंधन का अच्छा स्रोत है। जिन्हे चूल्हे में पका भोजन पसंद है, उनके लिये लकड़ी पर निर्भरता खत्म हो जाएगी।

       गाय का गोबर बहुत उपयोगी होता है । लेकिन   गोबर यदि दिमाग में हो तो ये नुकसानदायक भी होता है। इसके कारण अच्छे- बुरे की समझ समाप्त हो जाती है। ऐसा व्यक्ति शत्रु - मित्र में भेद नहीं कर पाता। नेतृत्व क्षमता, कार्यकुशलता में कमी होती है। बेवजह उचित - अनुचित सवाल पूछना अपना अधिकार समझने लगता है। ऊट पटांग सवाल पूछ कर अपना, समाज का , देश का नुकसान करता रहता है। स्वयं का मजाक बनवा कर भी वह जरा भी नहीं चेतता। इसीलिये भारतीय समाज में इनकी अपनी जगह , पहचान होते हुए भी उसे स्थापित नहीं रख पाते। 

सनातन धर्म में इसीलिये गाय का गोबर बहुत उपयोगी माना गया है। आने वाले समय में यदि यह और मंहगा बिके तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए । समाज को भी पशुपालन करते हुए उनकी तथा आम जनता ,फसलों की सुरक्षा को भी ध्यान में रख कर उचित जगह बांध कर रखने की आदत डालना होगा। गौ धन को सड़क पर खुला छोड़ने के विरुद्ध कुछ पंचायतों ने ऐसे लोगों को चिन्हित कर जूते लगाने और अर्थ दण्ड की मुनादी करवाई तो बवाल मच गया। आवारा पशु खेतों की फसलें चर जाएं तो इससे किसानों के अतिरिक्त देश की अर्थ व्यवस्था को भी नुकसान पहुँचता है। इनसे टकरा कर बहुत  से लोगों की जान चली गयी है। समाज और सरकार को इसके विरुद्ध सख्त रवैया अपनाना होगा। पशुपालकों को भी इस दिशा में चिंता करने की जरुरत है। जाहिर है कि गौ धन के बिना आत्मनिर्भर आध्यात्मिक भारत की कल्पना नहीं की जा सकती है।

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