समान पूर्वजों के वंशज तथा भारत के सभी लोगों के डीएनए में एक समानता पर पीएच.डी. शोध शुरू publicpravakta.com


समान पूर्वजों के वंशज तथा भारत के सभी लोगों के डीएनए में एक समानता पर पीएच.डी. शोध शुरू


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अनुपपुर :-  “भारत के लोगों के डीएनए में समानता के साथ सामान्य वंश के वंशजों का अध्ययन-विश्लेषण और उद्योग आधारित अमूर्त सांस्कृतिक विरासत वाले विश्व-गुरु स्वावलंबी भारत मॉडल के क्लाउड-डेटाबेस का विकास” शीर्षक के साथ इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में शोध छात्र चिन्मय पाण्डेय ने अपने शोध निदेशक प्रो (डॉ) विकास सिंह के मार्गदर्शन में पीएचडी शोध कर रहे है।  

शोध छात्र चिन्मय पाण्डेय ने बताया कि शोध के माध्यम से इसका वैज्ञानिक प्रमाणन किया जायेगा कि सभी भारतीयों का डीएनए एक समान है और हमारे पूर्वज एक ही थे। हर भारतीय जो 40,000 साल पुराने ‘अखंड भारत’ का हिस्सा है, उसका डीएनए एक है उन पूर्वजों के कारण भारतीय संस्कृति आज तक चलती आई है। भारत की आनुवांशिक बनावट में एक निरंतरता तथा समानता है। विभिन्न समुदायों के आनुवांशिक फलक पर एक कॉमन आनुवांशिक विशेषताओं के कारण आज भी सभी भारतीय एक सामान दिखाई देते हैं। इस शोध में यह भी पाया गया है सिंधु घाटी, गंगा और कावेरी के मैदानी भागों में रहने वाले समुदायों के बीच एक आनुवांशिक संबंध है। भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति एक ‘हिंदू’ है और सभी भारतीयों का डीएनए एक समान है। विविधता में एकता भारत की ये सदियो पुरानी विशेषता है। हिन्दुत्व पूरी दुनिया का एकमात्र विचार है जो सभी को एकसाथ लेकर चलने में विश्वास करता है। भारत में रहने वाला हर कोई हिंदू है। 

शोध छात्र चिन्मय पाण्डेय ने आगे बताया कि शोध में इसका भी अध्ययन किया जायेगा कि जो भी भारत को अपनी ‘मातृभूमि’ माता मानते हैं और इन विविधताओं के बावजूद एकता की संस्कृति में भरोसा रखते हुए साथ में रहना चाहते हैं वे सभी के स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव होता है तथा वे हिन्दू हैं। कोई किसी भी धर्म, संस्कृति, भाषा और खान-पान या विचारधारा से हो वो सभी हिन्दू हैं। भारतीयों के डीएनए की तुलना यूरोपीय मूल के निवासियों के डीएनए नमूनों से करके इसे साबित किया जायेगा। शोध के दौरान भारत में ऐतिहासिक डीएनए नमूनों की तथा आधुनिक नमूनों की अध्ययन के लिए डीएनए आंकड़े  एकत्रित कर और पूर्व अध्ययनों से मिली जानकारियों तथा भारतीय वंशावली को समझने की महत्वपूर्ण कड़ी को जोड़ा जायेगा।

शोध छात्र चिन्मय पाण्डेय ने इस तथ्य पर जोर दिया कि शोध में इसका भी अध्ययन किया जायेगा तथा यह शोध पत्र प्रकाशित किया जायेगा कि हिंदू संप्रदाय नहीं है बल्कि जीवन पद्धति है और इसी जीवन पद्धति से भारत को वैभवशाली, सामर्थ्यवान बनाना ही पीएचडी के अध्ययन का उद्देश्य है। हिंदुत्व ही ऐसी विचारधारा है, जिसकी विविधता में एकता है। शोध में इसका भी अध्ययन किया जायेगा तथा यह शोध पत्र प्रकाशित किया जायेगा कि हमारी कुंडली हमारा आनुवंशिक इतिहास है। इसी की बुनियाद पर नई पीढ़ी का भविष्य बनता है। इसका आधार गोत्र है। गोत्र , अर्थात मूल गुण। गुणसूत्र यानी क्रोमोसोम्स की गणना का इतना प्राचीन विज्ञान विश्व की किसी अन्य सभ्यता को प्राप्त ही नही है। भारतीय संस्कृति में हर प्रकार के संबंधों का आधार गोत्र को बनाया जाता रहा है। आधुनिक आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार स्त्री में गुणसूत्र xx होते है और पुरुष में xy होते है। इसी y गुणसूत्र का पता लगाना ही गोत्रप्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था। गोत्र प्रणाली ये गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है। आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि समान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी। ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता। ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है। विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया था।भारतवर्ष की विविधता में भी एकता है। सारी विविधता का संघ सम्मान करता है। घर पर किसी भी देवी-देवता की पूजा करतें हों, मातृभूमि ही सर्वोपरि है।   सभी पूजा पद्धति का यही उपदेश है कि सब में ईश्वर है। प्रेम से रहो, सेवा करो। मनुष्य अलग-अलग होता है, अलग सोचता है, लेकिन सबमें ईश्वर है। पीएचडी का उद्देश्य पूरे भारत का उत्थान है।

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