कांग्रेस में नीति , नेता , नेतृत्व पर अविश्वास से हुआ पीके का जन्म (मनोज कुमार द्विवेदी ) publicpravakta.com 


 कांग्रेस में नीति , नेता , नेतृत्व पर अविश्वास से हुआ पीके का जन्म


गांधी परिवार समझ जाए -- सत्ता का कोई शार्ट कट रास्ता नहीं है


( मनोज कुमार द्विवेदी, अनूपपुर- मप्र )


कांग्रेस के राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस को लेकर मैने चार साल पहले एक लेख लिखा था। तब मुझे जान‌ने वाले कांग्रेस के मेरे बहुत से मित्रों को बहुत बुरा लगा था। मेरी लेखनी, मेरी पत्रकारिता उन्हे एक तरफा लगी थी। उनमे से अधिकांश के नेता कांग्रेस छोड़ कर आज भाजपा में हैं और उनके पीछे पीछे वो सब भी। तब उनमें से कुछ ने अपमान जनक भाषा ( जैसे उनके संस्कार थे ) में मेरे विरुद्ध बहुत कुछ लिखा।*

*समय...सिर्फ...वो समय ही है जो आपको सही या गलत साबित करता है। चार साल में देश की गंगा, नर्मदा ,सोन में बहुत सा पानी बह गया है। बहुत से नेता दुनिया से चले गये...बहुत से नेता दलों से यहाँ से वहाँ हो गये।  मैं , मेरी लेखनी, मेरे विचार ,मेरे संस्कार आज भी नर्मदा मैया के आशीर्वाद से मेरे साथ हैं और मैं आपके साथ ।।* 

 👉 *इंदिरा से सोनिया हुई कांग्रेस कब राहुल की हो गयी ,लोगों को पता ही नहीं चला। अब खबरें आ रही हैं कि किसी समय की शरद पवार ,अर्जुन सिंह,माधवराव सिंधिया, शंकर दयाल शर्मा, एन डी तिवारी, मल्लिकार्जुन खडगे, कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम, गुलाम नबी आजाद, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, अमरिंदर सिंह जैसे दिग्गज नेताओं वाली कांग्रेस राहुल, सचिन, प्रियंका,सिद्धू, चन्नी , भूपेश के दौर तक पहुंचते - पहुंचते इतनी बेहाल हो गयी कि एक अदद जीत , एक महज सत्ता के लिये तथाकथित स्वतंत्रता संग्राम के लिये लडने वाली, नेताओं का बलिदान देने वाली राष्ट्रीय कांग्रेस को अपने ही दल के रीति- नीति, नेताओं ,नेतृत्व पर भरोसा नहीं रहा और वो पीके जैसे दल - दल भटकते पालिटिक्स इवेन्ट मैनेजर की शरण में जा गिरी। अब कांग्रेस के नेता या नेताओं की समझ , उनका अनुभव, उनकी रणनीति, उनका कौशल, उनका समर्पण, लाखों कार्यकर्ताओं की मेहनत नहीं...पी के के गुर कांग्रेस को जीत दिलाएगे ।* 

*मेहनत, कार्यकर्ताओं, रणनीति और जमीनी संघर्ष से दूर भागती कांग्रेस को अपने नेताओं पर भरोसा नहीं रहा। नेतृत्व की अकुशलता, उसका निकम्मापन, उसकी नासमझी, उसकी अलोकप्रियता की जगह वह एक के बाद एक मिलती हार के लिये अपनी ही पार्टी को ,नेताओ - कार्यकर्ताओं को जिम्मेदार मानकर सत्ता का शार्ट कट रास्ता तलाश रही है। गांधी परिवार को यह समझना होगा कि भारत जैसे परिपक्व लोकतांत्रिक देश में सत्ता का कोई शार्ट कट रास्ता हो ही नहीं सकता ।*

👉   कांग्रेस सल्तनत ( !!) के युवराज राहुल गांधी जब यह कहते हैं कि लोकतंत्र खतरे मे है तो वस्तुत: वे अपनी ही पार्टी के उस आन्तरिक लोकतंत्र की बात कर रहे होते हैं जो कभी थी ही नहीं। या ऐसा कहें कि उन्हे यह देखने का कभी अवसर ही नही मिला। यह इसलिये कि देश के लोकतंत्र की न उन्हे कोई जानकारी है , न वे जानकारी रखना चाहते हैं । २०१४ आम चुनाव  मे पराजय के वक्त उनकी मम्मी सोनिया गांधी अध्यक्ष थीं , वे स्वयं उपाध्यक्ष थे। इसके बाद बहुत से राज्यों मे अन्य दलों की तरह कांग्रेस भी मैदान मे थी,लेकिन दशा दूसरों की तुलना मे ज्यादा खराब हुई। किसी समय देश की सबसे बडी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस का पतन शीघ्र हो गया ,अब वह इक्का दुक्का राज्यों मे सिमट गयी है। विभिन्न राज्यों मे छोटी छोटी पार्टियों के सहारे को मोहताज कांग्रेस की चिन्ता २०१९ का आम चुनाव है ।जिसका रास्ता २०१८ मे होने वाले म प्र , छग ,राजस्थान विधानसभा चुनाव से होकर जाता है।  यह आसान नही है ,यह चिन्ता कांग्रेस को फ्रस्टेशन की ओर ले जा रही है। हडबडी मे वह ऐसा कुछ कर रही है जिससे सवाल अधिक खडे हो रहे हैं, जवाब एक भी नही सूझ रहा। धारदार नेता का आभाव व नेताओं में एकजुटता की कमी से पार्टी हलाकान है। हमेशा सत्ता मे रही कांग्रेस को सत्ता का बिछोह सहा नही जा रहा। नेता एक से एक मलाईदार व्यवसाय मे जुटे हैं तो धन्धा भी बचाना है। यही कारण है कि न्याय यात्रा भी निकालते हैं तो वह गुटबाजी तथा संवेदनहीनता की शिकार हो जाती है। हद तो तब हो जाती है जब संविधान रक्षा की दुहाई देते राहुल बाबा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सदन मे पन्द्रह मिनट देने तथा प्रधानमंत्री के खडे तक हो पाने का भोंडा चैलेन्ज देते हैं।

👉  अब कांग्रेस एक जुट हो  भला किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। लेकिन भाजपा से लोकतंत्र को खतरा है ,यह देश की जागरुक जनता के लिये किसी मजाक से कम नही। अब जरा आप अवलोकन करें कि -- १. न्यायालय से केस हारने के बाद इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया।

२.राजीव गांधी का शाहबानो प्रकरण तो पता ही होगा।

३.चुनाव हारते ही कांग्रेस इलेक्शन कमीशन ,ईव्हीएम पर ऊंगली उठाती  रही

४ सर्जिकल अटैक के बाद इनके नेता सेना पर ऊंगली उठाते दिखे।

५. अब राम मन्दिर पर कोई निर्णय आने से ठीक पहले सीजेआई के विरुद्ध न केवल महाभियोग लाती है बल्कि पत्रकार वार्ता भी करती है।

तो महोदय राहुल जी, यह न कहें कि भाजपा से लोकतंत्र को खतरा है। यह जरुर कहें कि कांग्रेस को कांग्रेस से...कांग्रेस को उसके नेतृत्व से खतरा है जिसने न केवल पार्टी को सिद्धान्त विहीन कर दिया बल्कि अच्छे कद्दावर नेता विहीन भी। कांग्रेस के नेताओं ने अभी भी पार्टी हित- देश हित मे नेतृत्व से पल्ला नही झाडा तो लोकतंत्र नहीं...बल्कि कांग्रेस को ही खतरे मे समझना चाहिए । 

यह दुनिया जानती है कि सदन के भीतर - बाहर कांग्रेस का आचरण कैसा रहा , इसलिये पन्द्रह मिनट तो क्या मोदी के सामने आप जैसा कोई व्यक्ति पांच मिनट भी नही टिक सकता। 

राजनीतिक पंडितों ( आप जैसा कोट के ऊपर जनेऊ पहनने वाला नहीं) ने यह भविष्य वाणी पहले ही कर दी है कि राहुल गांधी कांग्रेसी साम्राज्य के अंतिम शहजादे हो सकते हैं। मै भी सहमत हूं लेकिन थोडा अलग तरीके से। मेरा मानना है कि कांग्रेस मे बहुत से ( अधिकांश) जिम्मेदार ,स्वाभिमानी नेता / कार्यकर्ताओ का धैर्य तब चुक जाएगा जब २०१९ मे भी कांग्रेस राहुल के नेतृत्व में सत्ता से बाहर हो जाएगी । 

तब सचिन पायलट,ज्योतिरादित्य सिंधिया या अन्य गैर गांधी ( ?) खानदान का नेता या सामूहिक नेतृत्व अपनी जडों की ओर लौटेगा तब जाकर २०२३ - २०२८ तक कांग्रेस का संगठन जिला - गाँव स्तर पर खडा हो सकेगा। शहडोल संसदीय उप चुनाव मे हमने‌ देखा है कि हिमाद्री सिंह के पक्ष मे बहुत से मतदान केन्द्रों मे इनके ऐजेन्ट तक नहीं थे। यह स्थिति आज भी है। कांग्रेस सेवा दल का सालों पहले पतन हो चुका है। इसलिये मोदी से आप पन्द्रह मिनट नही , पन्द्रह साल का वक्त मांगे, तय करें , तब  आएं।.....

#विशेष_नोट..... 

*यह लेख मैने 2018 में लिखा था। तब 2018 -- 19 के चुनाव की तैयारियाँ शुरु हो चुकी थीं। ज्योतिरादित्य सिंधिया , हिमाद्री सिंह जैसे नेता कांग्रेस में थे। 2022 में इस लेख में लिखे हुए तथ्यों की समीक्षा की जा सकती है। उक्त दोनों नेताओं के भाजपा में आने के साथ इसी दल के तमाम हताश निराश नेताओं ने पार्टी को तिलांजलि दे दिया है। बहुत से वरिष्ठ नाराज नेताओं के अलग अलग ग्रुप हैं, अलग - अलग सुर हैं। जो शेष हैं....सिद्धू , दिग्विजय, मल्लिकार्जुन, कमलनाथों को पी के जैसों को नेता मानने के लिये तैयार हो जाना चाहिए। क्योंकि गांधी परिवार को ना पार्टी की रीति नीति पर भरोसा रहा और ना ही पार्टी के तमाम नेताओं पर। आने वाले दिनों में राष्ट्रीय कांग्रेस सत्ता की तलाश करते करते कांग्रेस ( इ ) , कांग्रेस ( सो ) , कांग्रेस ( रा ) ,कांग्रेस ( प्रि ) से होते हुए PK कांग्रेस के नाम से जानी जाए तो दुनिया को आश्चर्य नहीं होना चाहिए ।*

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